Sunday, March 17, 2019

ભુમીદાગ

સમાધીની ક્રિયા :- 
સતપંથ ધર્મમાં મૃત્યુબાદ મનુષ્યનાં શરીરને ભુમીદાગ સમાધી આપવામાં આવે છે જેનો સારાંશ નીચે દર્શાવ્યા પ્રમાણે છે.આ ભૂમીદાગ માત્ર સતપંથીઓને અપાય છે એવું નથી.સતપંથીઓ સિવાય સંન્યાસી, સાધુગણ, રબારી, કબીરપંથી,હરીજનો તદ્ઉપરાંત બ્રહ્મવેતાઓને બહોળી સંખ્યામાં ભૂમીદાગ અપાય છે.યુગ પ્રમાણે નાં દાગ શાસ્ત્રોમાં        
સૂચવેલા છે.પહેલા કર્તાયુગમાં વાયુદાગ હતો,બીજા ત્રેતાયુગમાં જળદાગ હતો,ત્રીજા દ્રાપરયુગમાં અિગ્નદાગ હતો અને આજે કિળયુગમાં ભૂમીદાગનો સ્પષ્ટ ઉ૯લેખ છે જે નીચેના સંસ્કૃત શ્લોક પરથી પૂરવાર થાય છે.  
अभिस्वोर्णामिं प्रथिव्या मातुर्वर्स्त्रेण भद्रया 
जीवेषु भद्रं तन्मयि स्वधा पितृषु सा त्वयि 
हे प्रेत (त्वा) तुझे माता पृथिर्वा के कलयाणकारि वस्त्र से आच्छादित करता हू अर्थात जमीन में तुझे गाडता हू । जीवितो में जो कल्याण है वह मेरे में हो अर्थात मुझे प्राप्त हो ओर जो पितरो में स्वधा है यह तुझे प्राप्त हो यहां पर स्पष्ट सब्दों में प्रेत को गाड्ने क पिर्देश है
ये निखाता ये परोप्ता ये दग्धा ये चौध्दिता:
सर्वास्तानग्न आवह पितुन हविषे अत्तवे।
हे अग्नि । (ये निखाताजो पितर जमिन में गाडे गए है ओर (ये परोप्ताजो पितरदुर बहा दिए गए है तथा (ये दग्धाजो जला दिए गए है ओर जो पितर जमीन के उपर हवा में रखे गए है उन सब पितरों को तू (हविषे अत्तवेहवि भक्षणार्थ ले आ
यहा पर चार प्रकार के स्मसान कर्म दर्साए गए है गाडना ,बहाना ,जलाना ओर हवा में जमीन पर खुला छोडना
इदमिद वा उ नापरे दिवि पस्यसि सुर्यम
माता पुत्रं यथा सिचाभ्यनं भूम उर्णू हि ।
हे मृत पुरुश (दिवि सुर्य पस्यसिजो धुलोक में सुर्य देखता है (यथा पुत्रं सिचाजिस प्रकार पुत्र को माता अपने आंचल से ढांपती हे पृथिवी तू इस मृत पुरुष को चारों और से ढांप ।
असौ हा इह ते मनककुत्सलमिव
जामय। अम्येनं भूम उर्णु हि ॥
(असौहे फ़लाने नाम्वाले प्रेत ।(इह ते मन: ) यहां तेरा मन है । हे (भुमे) पृथिवी(जायमककुत्सल मिव जिस प्रकार स्त्रिया अपने बच्चे को वस्त्र से ढांपती है स्त्रिया अपने सिर को ढांपती है उस प्रकार इस प्रेत को भलि प्रकार ढांप

पृथिवीं त्वा पृथिव्यामावेशयामि देवो नो धाता प्रतिरात्यायु:
परापरैता असुविद वो अस्त्वधा मृतापितृषु संभवन्तु ।
(पृथिवीं त्वा पृथिव्यां आवेशयामिमिट्टी से बने हुए हे मृत पुरुश ।तुझको मिट्टी मेंमिला देता हूं अर्थात तुझे पृथिवीं में गाडता हूं। (धाता देवआयुप्रतिरातिधारकदेव हमारि आयु को बढावे। हे(परापरैता🙂 प्रकृष्टतया हम से दुर चले गए पितरो तुम्हारे लिए धाता देव आरयदाता हो और मृत पितरों में अच्छी तरह होवें अर्थातपितरों मे जा मिले
हंस परहंस  कुटी चक्रबहूदकौ।
एतान्संन्यार्सिन्स्ताक्ष्य्। पृथिव्यां स्थाप्येत्र तान
गरुण पुराण
अर्थात हंस परमहंस कुटीचक्र ओर अतुविधि संन्यासि मृत्यु पामे तो उसको भुमि में गाड्ना चाहिए
इन उप्अरोक्त मंन्त्रो में मृत शरिर को गाडने क उलेख हे। इससे गाडने कि पृथा भि वैदिक हे पता चलता हे

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